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गलती हो जाए तो तुरंत स्वीकार कीजिए :
यदि किसी कार्य या बातचीत के दौरान कोई गलत तथ्य आपके मुह से निकाल जाए, कोई गलत शब्द आप लापरवाही में कह दें , कोई गलत संभोदन आप अज्ञानता में दे दें तो तुरंत स्वीकार कर लें। अक्सर इंसान जब कोई गलती करता है तो उसके बाद फिर वह तीन गलती और करता है –
मेरा मानना है कि भूल स्वीकारने का कार्य सिर्फ साहसी और चरित्रवान लोग ही कर सकते हैं। विश्व में कई विवादों में अक्सर राजनेता और फिल्म सितारे टेलीफ़ोन टेप में अपनी उपस्थिती से मुकरते रहे। उनके मुकरने और विरोध करने से हर रोज़ उन टेपों के अंश समाचार चैनलों की सुर्खियों में आते और उनकी बाल की खाल निकली जाती थी। बाद में फोरेंसिक जांच में वह सिद्ध हो जाता था और कई गुना बदनामी हाथ लगती थी। इसलिए त्रुटि हो जाने पर विवाद वहीं रफा दफा कीजिए, बात आगे बढ़ी तो दूर तक जाएगी और संभाले नहीं संभलेगी।
आप क्या कहते हैं से ज़्यादा महत्वपूर्ण है आप कैसे कहते हैं
बहस का अंत गरिमा से कीजिए
आप एक प्रॉफेश्नल हों या किसी संस्था में कार्यरत हों , आपका छोटा परिवार हो या सयुंक्त परिवार हो , आप किसी क्लब का हिस्सा हों या सामाजिक गतिविधियों का हिस्सा हों, यह तय मानकर चलिये की जहां चंद बुद्धिमान लोग होंगे , वहाँ विवाद होगा। किसी भी प्रकार की चर्चा या विवाद का अंत करना बहुत ही संवेदनशील मसला है। मेरा मानना है कि किसी भी बहस का अंत ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप सम्बन्धों को खो दें। इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखिए :-
गड़े मुर्दे मत उखाड़िए
गरिमापूर्ण बहस करना सबके बस की बात नहीं है। लोग बहस में जीतने के लिए या अपनी बात सिद्ध करने के लिए पुराने मुद्दों को बीच में ले आते हैं। पुरानी बातें बीच में लाने से दूसरा पक्ष भी उत्तेजित हो जाता है और आपकी सही बातों को मानने से इंकार कर देता है । विवाद बढ़ जाता है और पुराने घाव भी हरे हो जाते हैं। बार बार गड़े मुर्दे उखाड़ने से अर्थात पुरानी बातों को बीच में लाने से आपका प्रभाव कम हो सकता है , बात मूल मुद्दे से भटक सकती है , और ऐसी बातें भी सामने आ सकती हैं जिनसे आपकी भी पोल भी खुल जाए। बीते विवाद को उठाने वाले व्यक्ति को अपरिपक्व माना जाता है और कोई भी गंभीरता से उनकी बातें नहीं सुनता। इसलिए हर बहस वर्तमान में होनी चाहिए और वर्तमान में खतम होनी चाहिए, न उसमें पिछला दिन आना चाहिए और न ही वो अगले दिन तक जानी चाहिए।
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Dr. Ujjwal Patni