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ऑफिस में आ कर एक युवा ने मुझसे कहा – सर में आपका शिष्य बनकर आपकी तरह ट्रेनर बनना चाहता हूँ| उसकी परीक्षा लेने के लिए मैंने उसे तीन विषय दिए और कहा, एक महीने बाद इन विषयों पर प्रोग्राम तैयार करके मुझसे मिलना, जैसे ही उसे यह काम दिया उसके चेहरे पर मेरे लिए अजीब से भाव आ गए और वह कभी पलटकर नहीं लौटा|
कुछ महीनों बाद एक और युवा आया, मैंने उसे भी यही काम दिया और वह भी कभी पलटकर नहीं आया| अभी-अभी एक युवती आई जो मेरे एक प्रशिक्षक के रूप में हिस्सा लेना चाहती थी| वह उच्च शिक्षित प्रॉफेश्नल थी| मैंने उसे रीटेल सेक्टर का एक ट्रेनिंग प्रोग्राम बना कर आने के लिए कहा| ऐसा भी नहीं था कि उसने उस विषय संबन्धित सलाह मांगी हो और मैंने नहीं दी हो लेकिन वह भी नहीं लौटी| यह तीनों उम्मीदवार चाहते थे कि उन्हें तुरंत काम पर रख लिया जाए| उन्होंने इस सीखने की प्रक्रिया को हटाने के लिए मुझ तक सिफारिशें भी पहुंचाई|
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मैं यह देखकर हैरान हो गया कि लोग आखिर तपना क्यों नहीं चाहते, पसीना बहाना क्यों नहीं चाहते, सीखने की प्रक्रिया पूरी क्यों नहीं करना चाहते|विप्रो के मालिक,अजीत प्रेमजी ने अपने पुत्र को सीधे कंपनी का मालिक नहीं बनाया, वरन निचले पदों से धीरे-धीरे ऊपर आने को कहा| ऐसे उदाहरण अनेक कॉर्पोरेट घरानों में मिलते हैं| जब इतने धनी और नामी लोग तपने की प्रक्रिया का महत्व समझते हैं तो आम आदमी शॉर्टकट क्यों चाहता है|मैं कॉलेज एवं कॉर्पोरेट में मोटीवेशनल सेमिनार लेते हुए अक्सर यह महसूस करता हूँ कि आज अधिकांश छात्र कोर्स में से सिर्फ वह हिस्सा पढ़ना चाहते हैं, जिनमें से प्रश्न आते हैं| एक्ट्रेस एक्टिंग निखारने की बजाय अंग प्रदर्शन करके रोल पाना चाहती हैं|पी एच डी का छात्र रिसर्च में वक्त लगाने के बजाय गाइड की सेवा करता है|उद्योग नए उत्पाद का सृजन करने की जगह नकल में ज़्यादा रुचि रखते हैं| मेहनत करने का या तो दम गायब हो गया है या इच्छा नहीं रही|
आखिर लोग तपना क्यों नहीं चाहते :
एक युवा मूर्तिकार के पास मूर्ति बनाने की कला सीखने गया| मूर्तिकार ने कला सिखाने हेतु सहमति दी और अगले हफ्ते आने को कहा|अगले दिन मूर्तिकार ने उसे एक मार्बल का टुकड़ा पकड़ाया, ‘पकड़ो’ यह कहकर मूर्तिकार अपने काम में जुट जाता| सातवें दिन युवा ने निर्णय लिया कि अब यह नहीं चलेगा| उसे इस बात पर काफी अफसोस और आक्रोश था कि सात दिन होने को आए लेकिन मूर्तिकार ने उसे कुछ नहीं सिखाया| वह काम छोड़ने की इच्छा से मूर्तिकार के पास सातवें दिन जाकर बैठा| ‘मुझे अब और नहीं सीखना है’, यह बात वह मूर्तिकार से कहने जा ही रहा था, इतने में मूर्तिकार ने उसे पत्थर का टुकड़ा देकर कहा – लो,मार्बल पकड़ो| जैसे ही उसने वह टुकड़ा हर दिन की तरह अपने हाथ में लिया तो उसके मुंह से तुरंत निकला – यह मार्बल नहीं है, यह कोई और पत्थर है| उसका इतना कहना था कि उसके गुरु ने मुसकुराते हुए कहा, तुमने पहला चरण पास कर लिया है| वह यह जान कर हैरान रह गया कि इतने दिनों से उसे अंजाने में उस पत्थर की पहचान सिखाई जा रही थी| साथियों सात दिन तक वह मूर्तिकार उसे पत्थर की पहचान से वाकिफ कराता रहा, शायद सिखाने का यही तरीका होता है|
"हर चीज़ सिर्फ तब तक कठिन लगती है जब तक सरल नहीं हो जाती|" - थामस फुलर
हमने भारत की धरती पर समूह गान का पहला गीनिस विश्व रिकॉर्ड बनाया था, मेरे मुख्य निर्देशन में वह विश्व स्तरीय सफलता मिली थी| उसके बाद आसपास के प्रदेशों में जिसे भी विश्व रिकॉर्ड बनाना होता था, वह मेरे पास आकर घंटों चर्चा करते, लेकिन प्रयास कोई नहीं करता था| समय व्यर्थ होने पर मुझे अफसोस होने लगा| फिर मैंने एक निर्णय लिया कि किसी भी व्यक्ति को तीन बार बुलाऊंगा| यदि वह तीन बार निश्चित तारीक पर आ गया तो यह मानूँगा कि वो विश्व रिकॉर्ड बनाने हेतु कृत संकल्पित है| आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि दो लोगों को छोड़ कर कोई भी तीन बार नहीं आया| जो आए उन्होंने तारीक याद नहीं रखी और गलत दिन पहुंचे| जब तक आप किसी उपलब्धि हेतु तपने को तैयार ना हो, उसके लिए आवश्यक परिश्रम करने को तैयार ना हो, तब तक वह उपलब्धि आप को क्यों मिलनी चाहिए|
जीवन में जब चीज़ें सरलता से मिल जाए तो उनका हम मूल्य नहीं समझते| जिस उपलब्धि को पाने के लिए हमें संघर्ष करना पड़े, असल महत्व वही रखती है, जिस प्रकार तपे बिना मोमबत्ती रोशनी नहीं देती, तपे बिना जेवर नहीं बनता, तपे बिना कोयला हीरा नहीं बनता, तपे बिना खेत अनाज नहीं देते, तपे बिना लोहा आकार नहीं लेता, उसी तरह तपे बिना आदमी, खास नहीं बनता|
Dr. Ujjwal Patni
Motivational Speaker and Top Business Coach